Home » गाँवनॉमिक्स » हकीकत से काफी दूर है MSP का ख्वाब !

हकीकत से काफी दूर है MSP का ख्वाब !


MSP कानून तभी संभव है जब साम्यवादी देशों की तरह सम्पूर्ण कृषि भूमि एवं उपज घोषित कर दी जाए, अर्थात निजी स्वामित्व समाप्त कर दिया जाए।
आप स्वयं सोचिये, जिन उत्पादों को आप खरीदते हैं, अगर उनका दाम क़ानूनी रूप से संसद के कानून के द्वारा निर्धारित कर दिया जाए, राष्ट्रपति जी के सिग्नेचर से उस कानून का अनुमोदन, सरकारी गजट में उस क़ानूनी दाम के प्रकाशित होने के बाद लागू हो जाए, तो उसका क्या प्रभाव होगा? उदहारण के लिए, चावल को ले लीजीए। बासमती, सोना-मसूरी, पोन्नी, गोबिन्दोभोग चावल अलग-अलग हैं। बासमती के भी दाम दाने की साइज, प्रकार, पुरानापन एवं कहाँ और कैसे (ऑर्गनिक या रासायनिक) उगाया गया है, उस आधार पर भी दाम अलग-अलग मिलेंगे।

शरबती गेंहू सर्वश्रेष्ठ है और MSP के ऊपर बिकता है। क्या आप इस गेंहू का दाम संसद में निर्धारित कर सकते है? कल गेंहू-चावल की नयी वैरायटी आ जाती है, क्या उसके दाम के निर्धारण के लिए लोक सभा एवं राज्य सभा में बहस करवाएंगे और दाम निर्धारित करेंगे? क्या संसद का यही काम रह जाएगा? एकसमान दर साम्यवादी सोवियत यूनियन एवं यूगोस्लाविया में लागू थी और वे देश टूट कर बिखर गए। यही हाल अब वेनेज़ुएला का है।

आज भी जिन कृषि उत्पादों के लिए MSP निर्धारित की जाती है वे सब के सब MSP की दर पर नहीं खरीदे जाते। अगर MSP को कानून का हिस्सा बना देंगे तो इसका परिणाम यह होगा कि जितने भी उत्पादों की MSP सरकार निर्धारित करेगी, अगर उससे एक रुपए भी कम मिला तो यह कानून का उल्लंघन होगा। अतः किसी भी व्यापारी, उद्यमी तथा दुकानदार को MSP से कम दर पर खरीदे उत्पाद को बेचने के लिए जेल की सजा भी हो सकती है।

निजी क्षेत्र, स्वयं आप और हम सीधे किसान से MSP से नीचे उपज नहीं खरीद सकते क्योंकि वह भी एक अपराध होगा, भले ही किसान का पैसा मंडी टैक्स, बिचौलियों एवं ट्रांसपोर्ट में बच रहा हो। परिणामस्वरूप अगर व्यापारी और उद्यमी कृषकों से सीधे उत्पाद नहीं खरीदेगा। वही उत्पाद फिर किसान मंडी परिषद में बेचने के लिए बाध्य हो जाएंगे जहाँ पर उनका शोषण होगा। देखते- देखते कृषि आधारित निजी उद्यम और व्यापार ध्वस्त हो जाएंगे।

क्या आप खुदरा तरकारी, अन्न इत्यादि का मोलभाव बंद कर देंगे?

क्या आप लेबर सरकारी दामों पर लेना चाहते हैं? क्या आप उस लेबर को हेल्थ इन्स्योरेन्स एवं पेंशन भी देना चाहते हैं? क्या सरकार को राजगीर, मिस्त्री, बढ़ई, पेंटर, इलेक्ट्रीशियन, गिट्टी तोड़ने वाली मजूर, घर में बर्तन धोने वाली किशोरी, झाड़ू-पोछा करने वाली महिला, सेल्सपर्सन, ड्राइवर, क्लीनर, नाऊ महराज, इत्यादि की दिहाड़ी संसद के कानून द्वारा फिक्स करनी चाहिए?

क्या पंजाब के किसान एवं आढ़तिया खेत-मंडी में काम करने वाली लेबर, मुंशी इत्यादि की न्यूनतम समर्थन दिहाड़ी सांसद के कानून द्वारा फिक्स करवाने की मांग करेंगे? ध्यान रखिये मैं उन निजी कर्मियों की दिहाड़ी के बारे में कह रहा हूँ जो एक निजी उपभोक्ता हायर कर रहा है। दूसरे शब्दों में, दो निजी व्यक्तियों या उद्यमियों के बीच का वित्तीय सौदे (यानि कि दिहाड़ी के बदले सेवा) को क्या संसद का कानून निर्धारित करेगा?

क्या संसद बताएगी कि सर की चम्पी, बाल कटाई, कितने इंच बाल की कटाई, वयस्क एवं बच्चो के बालो की कटाई, आधे गंजे व्यक्ति के बालो की कटाई, मुंडन, दाढ़ी, फ्रेंच कट दाढ़ी, मूछों की छटाई, बालों की रंगाई इत्यादि का दाम क्या होना चाहिए? क्या संसद कानून बनाएगी कि हर बाल कटाई के बाद नाऊ महराज तौलिया बदलेंगे, तौलिये की ड्राई-क्लीनिंग करवाएंगे, इत्यादि?

अभी रिजर्वेशन सरकारी नौकरियों में है। क्या आप निजी क्षेत्र में भी क़ानूनी आरक्षण चाहते है? आखिरकार, अगर MSP – जो दो निजी व्यक्तियों या उद्यमियों के बीच का वित्तीय सौदा है – संसद के कानून से निर्धारित हो सकता है, तो निजी क्षेत्र की नौकरियों को भी संसद क्यों नहीं निर्धारित कर सकती?

क्या दो निजी व्यक्तियों या उद्यमियों के बीच के वित्तीय सौदे की न्यूनतम दर को संसद का कानून निर्धारित कर सकता है?

बाजार में किसी चीज की कीमत सिर्फ विक्रेता ही कैसे तय कर सकता है?

वर्ष 2019-20 में भारत का कुल अनाज उत्पादन 30 करोड़ टन था, जबकि फल और सब्जियों की उपज 32 करोड़ टन थी। दुग्ध उत्पादन 20 करोड़ टन था। इन सबके अलावा, मीट, मछली, अंडे और ऊन का उत्पादन भी कई करोड़ टन था। MSP केवल कुछ अन्न पर मिलती है। देश के कुल उत्पाद का केवल 6% MSP पर खरीदा जाता है। फल, सब्जियां, दुग्ध उत्पादन, मीट, मछली, अंडे और ऊन के उत्पादन पर कोई MSP नहीं है। जो 94% फसल MSP पर नहीं खरीदी जाती, वो खरीद अवैध घोषित हो जायेगी।

चाहे आप किसी भी पार्टी को सरकार को ले आए वह पूरे देश की कृषि उपज कभी भी एमएसपी पर नहीं खरीद सकती।

अगर सारा उत्पाद सरकार को MSP पर खरीदना है तो इसका परिणाम यह होगा कि साम्यवादी देशो की तरह सम्पूर्ण कृषि भूमि एवं उपज सरकारी घोषित कर दी जाए, अर्थात निजी स्वामित्व समाप्त कर दिया जाए । तभी सारी खरीद सरकारी हो सकती है


-अमित सिंघल

Amit Singhal

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright@2022 www.gaondesh.com. Designed By RBM Mediaworks